Saturday, July 1, 2017

ताऊ ने बुलाया है
महफिल ये सजाया है
बहाना है ब्लॉग दिवस
बिछडो को मिलाया है

सभी को राम




मुकद्दर से मेरे मै लड़ ना सका था
सच बात ये थी मैं कह ना सका था
हुई गुलजार वो हर एक शाम थी
महफिल में जब मैं जा ना सका था

रुसवाई से डर के तन्हा रहा था
कातिल थी नजरें बच ना सका था
फना कर दिया खुद ही को तभी से
जब तूने मुझ को ठुकरा दिया था

वादा जो मैंने तुझसे किया था
तपती दुपहरी में घर से चला था
गैरों की बाहों में देखा जो तुझको
नजरों से मेरी तू गिर गया था

उलझा रहा समझ ना सका था
कितना दर्द जो मैंने सहा था
कैसे मैं उसको बेवफा बता दूँ
जो कभी मेरा अपना रहा था
शौर्य