Sunday, September 22, 2013

बहुत दिनों से इस गजल को तलाश रहा था , आज ये मिल गयी,बहुत प्यारी गजल है, आप एक बार इस पर नजर डाले,,, अदम गोंडवी जी की एक बेहतरीन गजल है ये 





हिन्‍दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए
अपनी कुरसी के लिए जज्‍बात को मत छेड़िए


हममें कोई हूणकोई शककोई मंगोल है
दफ़्न है जो बातअब उस बात को मत छेड़िए


ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीजुम्‍मन का घर फिर क्‍यों जले
ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए


हैं कहाँ हिटलरहलाकूजार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सबक़ौम की औक़ात को मत छेड़िए


छेड़िए इक जंगमिल-जुल कर गरीबी के खिलाफ़
दोस्त मेरे मजहबी नग़मात को मत छेड़िए 



8 comments:

  1. बहुत ही बेहतरीन गजल है..
    :-)

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  2. ghazal k liye mubarakbade'n bhai....behtrin gazal hai

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  3. बेहतरीन ग़ज़ल है यह. . . .

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  4. सुभानाल्लाह बहुत ही खुबसूरत |

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  5. बहुत बहुत आभार इस ग़ज़ल को साझा करने के लिए

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  6. इस खुबसूरत ग़ज़ल को साझा करने के लिए

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  7. Very nice words I like it.......

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  8. Very nice words I like it.......

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