Friday, August 2, 2013

भगवती चरण वर्मा की कविताये

आज पहली बार भगवती चरण वर्मा की कविताये पढ़ी है , आपके साथ साझा कर रहा हूँ, आज पढ़कर पता चला कि क्यों उनकी इतनी तारीफ करते है सभी 


संकोच-भार को सह न सका
संकोच-भार को सह न सका
पुलकित प्राणों का कोमल स्वर
कह गए मौन असफलताओं को
प्रिय आज काँपते हुए अधर।

छिप सकी हृदय की आग कहीं?
छिप सका प्यार का पागलपन?
तुम व्यर्थ लाज की सीमा में
हो बाँध रही प्यासा जीवन।

तुम करुणा की जयमाल बनो,
मैं बनूँ विजय का आलिंगन
हम मदमातों की दुनिया में,
बस एक प्रेम का हो बन्धन।

आकुल नयनों में छलक पड़ा
जिस उत्सुकता का चंचल जल
कम्पन बन कर कह गई वही
तन्मयता की बेसुध हलचल।

तुम नव-कलिका-सी-सिहर उठीं
मधु की मादकता को छूकर
वह देखो अरुण कपोलों पर
अनुराग सिहरकर पड़ा बिखर।

तुम सुषमा की मुस्कान बनो
अनुभूति बनूँ मैं अति उज्जवल
तुम मुझ में अपनी छवि देखो,
मैं तुममें निज साधना अचल।

पल-भर की इस मधु-बेला को
युग में परिवर्तित तुम कर दो
अपना अक्षय अनुराग सुमुखि,
मेरे प्राणों में तुम भर दो।

तुम एक अमर सन्देश बनो,
मैं मन्त्र-मुग्ध-सा मौन रहूँ
तुम कौतूहल-सी मुसका दो,
जब मैं सुख-दुख की बात कहूँ।

तुम कल्याणी हो, शक्ति बनो
तोड़ो भव का भ्रम-जाल यहाँ
बहना है, बस बह चलो, अरे
है व्यर्थ पूछना किधर-कहाँ?

थोड़ा साहस, इतना कह दो
तुम प्रेम-लोक की रानी हो
जीवन के मौन रहस्यों की
तुम सुलझी हुई कहानी हो।

तुममें लय होने को उत्सुक
अभिलाषा उर में ठहरी है
बोलो ना, मेरे गायन की
तुममें ही तो स्वर-लहरी है।

होंठों पर हो मुस्कान तनिक
नयनों में कुछ-कुछ पानी हो
फिर धीरे से इतना कह दो
तुम मेरी ही दीवानी हो।
 
बस इतना--अब चलना होगा
बस इतना--अब चलना होगा
फिर अपनी-अपनी राह हमें।
कल ले आई थी खींच, आज
ले चली खींचकर चाह हमें
तुम जान न पाईं मुझे, और
तुम मेरे लिए पहेली थीं,
पर इसका दुख क्या? मिल न सकी
प्रिय जब अपनी ही थाह हमें।


तुम मुझे भिखारी समझें थीं,
मैंने समझा अधिकार मुझे
तुम आत्म-समर्पण से सिहरीं,
था बना वही तो प्यार मुझे।
तुम लोक-लाज की चेरी थीं,
मैं अपना ही दीवाना था
ले चलीं पराजय तुम हँसकर,
दे चलीं विजय का भार मुझे।


सुख से वंचित कर गया सुमुखि,
वह अपना ही अभिमान तुम्हें
अभिशाप बन गया अपना ही
अपनी ममता का ज्ञान तुम्हें
तुम बुरा न मानो, सच कह दूँ,
तुम समझ न पाईं जीवन को
जन-रव के स्वर में भूल गया
अपने प्राणों का गान तुम्हें।


था प्रेम किया हमने-तुमने
इतना कर लेना याद प्रिये,
बस फिर कर देना वहीं क्षमा
यह पल-भर का उन्माद प्रिये।
फिर मिलना होगा या कि नहीं
हँसकर तो दे लो आज विदा
तुम जहाँ रहो, आबाद रहो,
यह मेरा आशीर्वाद प्रिये।

10 comments:

  1. वाह वाह......आपने सही कहा..कयु वे प्रसिध्ध है..मैने भी आज ही पढा..अती सुंदर..्मजा आया..

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  2. बहुत सुन्दर

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  3. भगवती चरण वर्मा की कविताएँ स्कूल-वक्त में पढ़ा करते थे ...पर आज यहाँ पढ़ का आनंद आ गया

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  4. बहुत खुबसूरत !!! पढ़ाने के लिए धन्यवाद !!

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  5. बहुत सुन्दर रचना को पढवाया है आपने ... शुक्रिया ...

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  6. आप सभी का बहुत बहुत आभार

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  7. अति सुन्दर रचनाओं को पढ़वाने के लिए आभार...

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  8. waah itni sundar rachna padhwaane ke liye dhanyavad malik sahab ...

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