Sunday, October 27, 2013

मुहब्बत रहती कहाँ

कोई बता दे पता
मुहब्बत रहती कहाँ
ढूंढ़ रहा हूँ मैं
वर्षो से उसका पता

दिल की बेकरारी है
राते जग कर गुजारी हैं
तिस्नगी को भी बढाया
तब भी ना पता लग पाया

सूरज, तारो, चाँद, तारो से पूछा
घूमते हो तुम पूरे जहाँ में
कभी कही किसी मोड़ पर
मिला तुम्हे मुहब्बत का पता

पर्वत,मोसम,पेड और पन्छी
धुप ,छाव,सर्दी और गर्मी
सबसे मैंने बस यही पूछा
बताओ मुहब्बत रहती कहाँ

धीमे धीमे होले होले
सब मंद मंद मुस्काते है
लगता है मालूम है इनको
किन्तु मुझको नहीं बताते है

सरिता , सागर  और तालाब
सबके गया किनारों पर
वही पवन  ने फुसफुसाकर
मुझको बस इतना कहाँ

मुहब्बत मिलती नहीं
बस हो जाती है
दिल को एक पल में
दीवाना कर जाती है

तब मेरे दिल ने हँस कर कहा
जिसका तू ढूंढ़ रहा था पता
वो रहती हरदम मुझमे
कभी अंदर आने की जेहमत उठा

डॉ शौर्य मलिक 

Friday, October 18, 2013

रल्धू 3

आज सुबह सुबह रल्धू मेरे घर आ गया और बोलया भाई तू मेरे ऊपर फिर से कुछ लिखणे वाला है , मैंने कहा हा भाई लिख रहा हूँ , तो वो बोला हमेशा मेरा मजाक उड़ाते हो , कभी तो कुछ अर्थपूर्ण बात लिख दिया करो , मैंने कहा ठीक है भाई इस बार हास्य कम और व्यंग्य ज्यादा है , जो आजकल हमारी सोच हो गयी है उसके बारे में लिखने की कोशिश कर रहा हूँ , वैसे भी अगर  नहीं लिखा तो रल्धू कॉपीराइट का मुकदमा कर देगा मुझ पर ,  इस बार मैंने रल्धू को मुक्तक में लिखने का प्रयास किया है , आप सभी की प्रतिकिर्या की उम्मीद करता हूँ ...................

रल्धू की यारो देखो कैसी शामत आई
मेम तै करा जो ब्याह,घर में आफत आई
गिटपिट गिटपिट काटे ढेर कसूती अंग्रेजी
अरे यार  मेरे पल्ले या के जहमत आई

तडके तै साँझ ढले तक काम करे बिचारा
घर,बासन,कपडे,साफ़ करण मे मरे बिचारा
कधी पकावै आमलेट तो कधी कुक्कड़ कूँ
पैडी वाला मैनी वाला क्योर भी करे बिचारा

दूध दही की तो इस घर में थी बहती नदियाँ
अब तो उडे धुम्मा अर दारू की बहती नदियाँ
वो बोलया ब्याह कै ना लाइयो कधी मेम
देश की छोरी तै ही प्यार की बहती नदियाँ

डॉ शौर्य मालिक 

Friday, October 11, 2013

पर हम तो यारो केले है

काफी दिनों के बाद ब्लॉग पर आया हूँ , आप सभी से दूर रहने के लिए माफ़ी चाहता हूँ, कोशिश करूँगा कि अब लगातार आप लोगो के सम्पर्क में रहूँ , एक छोटी सी गजल कहने की कोशिश की है, जो गलतियाँ हो कृप्या मुझे बताये ,आप सभी के कमेंट्स का इंतजार रहेगा

दर्द सभी ने कुछ झेले है
जिन्दा वो, जो अलबेले है

बिकता है अंगूर यहाँ तो
पर हम तो यारो केले है

अनपढ़ बनते राजा देखो
खेल अजब किस्मत खेले है

प्यार,भरोसा ,रिश्तो के अब
लगते रोज़ यहाँ मेले है

चाहो जैसे तोड़ो वैसे
हम तो मिटटी के ढेले है

डॉ शौर्य मलिक 

Sunday, September 22, 2013

बहुत दिनों से इस गजल को तलाश रहा था , आज ये मिल गयी,बहुत प्यारी गजल है, आप एक बार इस पर नजर डाले,,, अदम गोंडवी जी की एक बेहतरीन गजल है ये 





हिन्‍दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए
अपनी कुरसी के लिए जज्‍बात को मत छेड़िए


हममें कोई हूणकोई शककोई मंगोल है
दफ़्न है जो बातअब उस बात को मत छेड़िए


ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीजुम्‍मन का घर फिर क्‍यों जले
ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए


हैं कहाँ हिटलरहलाकूजार या चंगेज़ ख़ाँ
मिट गये सबक़ौम की औक़ात को मत छेड़िए


छेड़िए इक जंगमिल-जुल कर गरीबी के खिलाफ़
दोस्त मेरे मजहबी नग़मात को मत छेड़िए 



Thursday, September 12, 2013

दर्द

आज काफी दिनों के बाद ब्लॉग पर आया हूँ, मेरा शहर भी दंगो की चपेट में था , जो कुछ भी इन दंगो में हुआ है, मैंने तो बस इंसानियत का क़त्ल होते देखा है , दिल बहुत दुखी है , एक गजल कहने की कोशिश की है जो एक इन्सान दंगो से पीड़ित है उसके मन की व्यथा को बताने की कोशिश की है, मेरे गुरु श्री नीरज गोस्वामी जी के पारस जैसे हाथो ने इसे सवारां है , जो गलतियाँ मुझसे हुई थी उसे उन्होंने दूर किया है ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

सब से छुप कर रहता था 

हर आहट पर डरता था 


बाहर से था शेर मगर 

खोफ मुझे भी लगता था 


भाई के हाथो क्यूँ कर 

भाई का घर जलता था 


भूल गया था तू शायद 

दर्द तिरे मैं सहता था 


एक धोखा था प्यार यहाँ 

खून तभी तो बहता था 






Monday, September 2, 2013

मेरे कान्हा चले आओ

लफ्जो की है मज़बूरी

तुम नजरो से समझ जाओ

कहती है राधा रानी

मेरे कान्हा चले आओ


माखन की मटकी अब

तड़फती है टूटने को

कहती है ये मटकी भी

मेरे कान्हा चले आओ


बचपन की अटखेलियाँ

वो जंगल वो गऊ मईया

कहती है आज फिर से

मेरे कान्हा चले आओ


वियोग की बेला है ये

अब ना और तडफाओ

मिलन की घड़ियाँ कहती है

मेरे कान्हा चले आओ

मेरे कान्हा चले आओ

डॉ शौर्य मलिक

Tuesday, August 27, 2013

साहब

बहर २२२२२२२२२२२२२२२२ 

मजहब की बातो पर ना जाने क्यों मर मिटते हो साहब 

चाल सियासतदारो की क्यों जान नहीं पाते हो साहब 


जाने अनजाने हर बार बहक जाते हो बातो में इनकी 

जो बीत गयी है उन बातो से कहाँ सिखते हो साहब 



सबको मंजिल तक साथ निभाने का भरोसा दे कर के 

बीच सफ़र में ही क्यों वादा तोड़ चले जाते हो साहब 



झूटी शानो शोकत और पैसो के चक्कर में भी तो

जीवन में अपने प्यारो से ही धोखा खाते हो साहब 



जीवन की राहो में 
तुम गिरकर सम्हल जाते हो लेकिन 

मोहब्बत की गलियों में क्यों हर बार गिरते हो साहब 

Wednesday, August 21, 2013

असफल प्रयास

गजल कैसे लिखते है, उन्ही बातो को आज गजल के रूप में कहने का एक असफल प्रयास कर रहा हूँ, 

बहर २२२२२२२२ 



मिसरा जो पहले आता है
मिसरा ऐ ऊला कहलाता है 

गर मतले के बाद हो मतला
वो हुस्ने मतला बन जाता है

बहरो पर होती है गजले
तभी तो गायक गा पाता है

ऊला में होती आधी बात
शानी ही 
पूरी करवाता है

आता जब शायर का नाम
शेर वो मक्ता बन जाता है 



  

Wednesday, August 7, 2013

बात होती

भूल जाते है
बहुत सी बातो को 
लेकिन तेरी बातो को कभी 
भूलने की बात नहीं होती 

रहते थे व्याकुल 
मिलने को तुझसे
आज मिलकर भी तुझसे
कोई बात नहीं होती

गर मिल जाते तुम
आज मुझको तो
फिर उन पुरानी
मुलाकातों की बात होती

बेवफाई ना करते
अगर तुम मुझसे
तो आज भी होटो पर
तेरी वफ़ा की बात होती 

Sunday, August 4, 2013

गजल

अभी मुझे कुछ ज्यादा मालूम नही है गजलो के बारे में ,जो गलतियाँ की हो कृप्या उन्हें मुझे बताये ताकि मैं फिर उन्हें न दोहराऊ


गजल
बहर २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२ २२

जब आया हूँ तो बात बताकर जाऊँगा
राजो से परदा आज हटाकर जाऊँगा

जितना जब मुझको जिसने तडपाया था,अब
मैं भी उनको उतना सताकर जाऊँगा

तूने मेरी राहों में खार बिछाये थे
एक काँटा मैं भी आज चुभाकर जाऊँगा

हसते गाते गुनगुनाते एक दिन यूँ ही
जो रूठे है उनको मनाकर जाऊँगा

रुलाया है तुमने जुदाई में ,एक दिन
तुमको अलविदा कह रुलाकर जाऊँगा

डॉ शौर्य मलिक  

Friday, August 2, 2013

भगवती चरण वर्मा की कविताये

आज पहली बार भगवती चरण वर्मा की कविताये पढ़ी है , आपके साथ साझा कर रहा हूँ, आज पढ़कर पता चला कि क्यों उनकी इतनी तारीफ करते है सभी 


संकोच-भार को सह न सका
संकोच-भार को सह न सका
पुलकित प्राणों का कोमल स्वर
कह गए मौन असफलताओं को
प्रिय आज काँपते हुए अधर।

छिप सकी हृदय की आग कहीं?
छिप सका प्यार का पागलपन?
तुम व्यर्थ लाज की सीमा में
हो बाँध रही प्यासा जीवन।

तुम करुणा की जयमाल बनो,
मैं बनूँ विजय का आलिंगन
हम मदमातों की दुनिया में,
बस एक प्रेम का हो बन्धन।

आकुल नयनों में छलक पड़ा
जिस उत्सुकता का चंचल जल
कम्पन बन कर कह गई वही
तन्मयता की बेसुध हलचल।

तुम नव-कलिका-सी-सिहर उठीं
मधु की मादकता को छूकर
वह देखो अरुण कपोलों पर
अनुराग सिहरकर पड़ा बिखर।

तुम सुषमा की मुस्कान बनो
अनुभूति बनूँ मैं अति उज्जवल
तुम मुझ में अपनी छवि देखो,
मैं तुममें निज साधना अचल।

पल-भर की इस मधु-बेला को
युग में परिवर्तित तुम कर दो
अपना अक्षय अनुराग सुमुखि,
मेरे प्राणों में तुम भर दो।

तुम एक अमर सन्देश बनो,
मैं मन्त्र-मुग्ध-सा मौन रहूँ
तुम कौतूहल-सी मुसका दो,
जब मैं सुख-दुख की बात कहूँ।

तुम कल्याणी हो, शक्ति बनो
तोड़ो भव का भ्रम-जाल यहाँ
बहना है, बस बह चलो, अरे
है व्यर्थ पूछना किधर-कहाँ?

थोड़ा साहस, इतना कह दो
तुम प्रेम-लोक की रानी हो
जीवन के मौन रहस्यों की
तुम सुलझी हुई कहानी हो।

तुममें लय होने को उत्सुक
अभिलाषा उर में ठहरी है
बोलो ना, मेरे गायन की
तुममें ही तो स्वर-लहरी है।

होंठों पर हो मुस्कान तनिक
नयनों में कुछ-कुछ पानी हो
फिर धीरे से इतना कह दो
तुम मेरी ही दीवानी हो।
 
बस इतना--अब चलना होगा
बस इतना--अब चलना होगा
फिर अपनी-अपनी राह हमें।
कल ले आई थी खींच, आज
ले चली खींचकर चाह हमें
तुम जान न पाईं मुझे, और
तुम मेरे लिए पहेली थीं,
पर इसका दुख क्या? मिल न सकी
प्रिय जब अपनी ही थाह हमें।


तुम मुझे भिखारी समझें थीं,
मैंने समझा अधिकार मुझे
तुम आत्म-समर्पण से सिहरीं,
था बना वही तो प्यार मुझे।
तुम लोक-लाज की चेरी थीं,
मैं अपना ही दीवाना था
ले चलीं पराजय तुम हँसकर,
दे चलीं विजय का भार मुझे।


सुख से वंचित कर गया सुमुखि,
वह अपना ही अभिमान तुम्हें
अभिशाप बन गया अपना ही
अपनी ममता का ज्ञान तुम्हें
तुम बुरा न मानो, सच कह दूँ,
तुम समझ न पाईं जीवन को
जन-रव के स्वर में भूल गया
अपने प्राणों का गान तुम्हें।


था प्रेम किया हमने-तुमने
इतना कर लेना याद प्रिये,
बस फिर कर देना वहीं क्षमा
यह पल-भर का उन्माद प्रिये।
फिर मिलना होगा या कि नहीं
हँसकर तो दे लो आज विदा
तुम जहाँ रहो, आबाद रहो,
यह मेरा आशीर्वाद प्रिये।

Monday, July 29, 2013

वो पीले सूट वाली लड़की .....

वो पीले सूट वाली लड़की ,

आज भी जब याद आती है,

तो दिल मचल उठता है,

उसकी वो सोखी, वो अदाएँ,

वो उसकी आँखों का नशा ,

आज भी हमें दीवाना  बना देता है,

उसकी वो प्यारी सी हसी ,

उसका शरमाना ,

वो नजाकत से बाते करना ,

चेहरे से बार बार ,

जुल्फों को हठाना ,

हमारे लिए,

 उनका वो बे इन्तहा प्यार ,

उनका वो रूठना ,

प्यार से बोलते ही मान जाना,

वो डर कर उनका,

हमारे गले लग जाना,

उनकी वो सांसो की खुशभू ,

वो दिल का जोरो से धड़कना ,

वो बार बार हमें देखना,

आँखों से हाल ऐ दिल बयां करना,

वो मूड मूड कर हमें देखना,

घंटो तक हमसे ,

प्यार की बातें करना,

उनकी वो शरारते ,

वो बार बार हमें पुकारना ,

वो फिर हस कर चले जाना,

उनके चेहरे की वो सादगी ,

वो मासूमियत ,

आज भी जब हमें याद आती है,

तो जिन्दगी में एक बार फिर से,

सब अच्छा से लगने लगता है,

वो पीले सूट वाली लड़की ........................................


  

Wednesday, July 24, 2013

पुस्तक चर्चा -१,,,,,,, मेरे गीत (सतीश सक्सेना )

आज आप सभी के सामने मैं एक पुस्तक चर्चा लेकर आया हूँ, ''मेरे गीत'' सतीश सक्सेना जी द्वारा लिखी गयी ये पुस्तक उनके गीतों का अनमोल संग्रह है , सतीश भाई को तो आप सभी  अच्छे से जानते ही है , पुस्तक में सतीश जी ने रिश्तों के महत्व पर बहुत जोर दिया है,हर रिश्ते का महत्व उन्होंने हमें बताया है, माँ बेटे का रिश्ता हो, पिता और पुत्री का,सास ससुर, बहु, भाई, बहन , कुछ पंक्तिया जो माँ के लिए लिखीं है


हम जी न सकेंगे दुनिया में,

माँ जन्मे कोख तुम्हारी से,   

जो दूध पिलाया बचपन में,

यह  शक्ति उसी से पायी है

जबसे तेरा आँचल छुटा  , हम हसना अम्मा भूल गये 

हम अब भी आंसू भरे , तुझे टकटकी लगाये बैठे है,


बुजुर्गो की व्यथा लिखते हुए कहा है की -

सारा जीवन कटा भागते ,

तुमको नर्म बिछोना लाते ,

नींद  तुम्हारी न खुल जाये 

पंखा झलते थे,सिराहने 

आज तुम्हारे कटु  वचनों से,मन कुछ डावाडोल हुआ है,

अब लगता है तेरे बिन मुझको,चलने का अभ्यास चाहिए,


 कुछ और पंक्तिया पढ़े ,  सुन्दरता से अपनी हर बात को रखा है,


रजनीगंधा सी सुन्दरता ,

फूलो की गंध उठे ऐसे ,

 उन भूली बिसरी यादो से,

ये गीत सजे अरमानो के,

मैं कभी सोचता कियो  मुझको, संतोष नहीं है जीवन में,

यह कियो उठती अतृप्त भूख ,सूनापन सा इस जीवन में,

रात भर सो गिले में ,

मुझको गले लगाती होगी,

अपनी अंतिम बीमारी में,

मुझको लेकर चिंतित होंगी,

बच्चा कैसे जी पायेगा ,वे निश्चित ही रोती होंगी,

सबको प्यार बाटने वाली,अपना कष्ट छिपाती  होगी,


कोई गोता खाये  बालो में,

कोई डूबा गहरे प्यालो में,  

कोई मयखाने में जा बैठा ,

कोई सोता गहरे ख्वाबो  में,

जलते घर माँ को छोड़ चले ,वापिस कोई कियो आएगा?

निष्ठुर लोगो की नगरी में,अब मेरे गीत कोन  गायेगा ?


 नव वधू  के लिए एक गीत है उसकी कुछ पंक्तिया पेश करता हूँ,भाव ही भाव है पूरे गीत में  

प्रथम प्यार का ,प्रथम पत्र है ,

लिखता निज मृगनयनी को,

उमड़ रहे जो भाव हृदय में,

अर्पित,प्रणय संगिनी को,

इस आशा के साथ,कि समझे भाषा प्रेमालाप की,

प्रेयसी पहली बार लिख रहा, चिठ्ठी तुमको प्यार की,

कुछ और पंक्तिया माँ के लिये लिखी है,  वो भी पढ़े,

सारे जीवन, हमें हसाया, 

सारे घर को स्वर्ग बनाया,

खुद तकलीफ उठा कर अम्मा,

हम सबको हसना सिखाया,

तुमको इन कष्टो में पाकर,हम जीते जी मर जायेंगे,

एक हसी के बदले अम्मा , फिर से रोनक आ जाएगी,


वैसे तो इस पुस्तक में बहुत कुछ है पढने को लेकिन सब यहाँ लिख भी  नहीं सकता , फिर भी कुछ और पंक्तिया जो मुझे बहुत अच्छी लगी आपके साथ साझा करता हूँ,,

कचरे वालो को बुलवाने 

बेटा भेजा कचरे पर 

इंटरव्यू देने को आये 

सड़े भिखारी कचरे से 

देवी जी का दिल भर आया हालत देखी कचरे की 

घर में उस दिन बनी ना रोटी यादें आई कचरे की


लेखक की विनती बहुत ही मजेदार है,


मेरे ऊपर धन  बरसा दे,

कुछ लोगो को सबक सिखा दे  

मेरा कोई ब्लॉग न पढता 

ब्लॉग जगत में भोले शंकर

 मेरे को ऊपर पंहुचा दे,

मेरा भी झंडा फहरा  दे 

मेरे आगे पीछे घुमे,दुनिया,

ऐसी जुगत करा दे ,,,,,,,


इस पुस्तक को मंगाने  के लिए ज्योतिपर्व प्रकाशन के प्रकाशक भाई अरुण चंद्र रॉय से सम्पर्क कर सकते है उनका फ़ोन नंबर है,09811721147 ,,,,,,,,,,,,,,,   सतीश जी से इस नंबर पर बात कर सकते है,,,,,,,,,,, 09811076451,

फ्लिप्कार्ट से मंगाने के लिए इस लिंक पर  जाये 


पेज संख्या -१२२,  मूल्य -१९९  

फिर मिलेंगे किसी और पुस्तक की चर्चा के साथ , तब तक के लिए विदा,,,,,,,,,,,,,











Monday, July 22, 2013

गुरु को समर्पित

आज गुरु पूर्णिमा को गुरु की महिमा को बखान करने के लिए कुछ पंक्तिया लिखी है ,वैसे तो जो भी लिखा है, यह कुछ भी नही है,उस गुरु की महिमा को बयां करने के लिए , लेकिन कोशिश की है, अपने गुरु श्री नीरज गोस्वामी जी से मैंने गजल कहना सीखा है, लेकिन गजल को भाव नही दे पाता  हूँ, आज ये गजल  और ये चंद पंक्तिया अपने गुरु श्री नीरज गोस्वामी जी को समर्पित करता हूँ, वैसे तो इस गजल में बहर के अलावा कुछ नही है, भाव कहने मुझे नही आते, ये पहली गजल है जो मैं कही लिख रहा हूँ,जो गलतियाँ हो आप सब लोग उन्हें माफ़ करके मेरा मार्गदर्शन करे , 

गुरु श्रधा है,

भक्ति है,

शक्ति है,

अलख है,

अगम है,

डूबते का सहारा है,

भोतिक जगत से

न्यारा है,

समुद्र की लहरों में 

एक किनारा है,

प्रेम रस है,

दया की मूरत है,

खुदा की नेमत है,

अलोकिक है,

गुरु की लीला 

अपरम्पार,

गुरु जैसा न कोई 

तारणहार ,,,,  


बहर २ २ २ २ २ २ २ २ 

गजल 

तन्हा जीवन ना जाया कर ,

तू  हमसे मिलने आया कर ,


दुनिया का हो तुझको कुछ गम,

इस कन्धे सर रख रोया कर,


बातो ही बातो में अब तू ,

मंजर इस दिल का खोला कर,


काली काली इन जुल्फों को,

अब तू,मत यूँ लहराया कर,


नीली मतवाली आँखों से,

शौर्य को ना तडफाया कर, 


Tuesday, July 16, 2013

दिल चाहता है

तेरी आरजू ऐसी थी की तुझसे मिलने को ,

दिल चाहता है ,

जिन्दगी को फिर एक नए मुकाम से जीने को ,

दिल चाहता है ,

एक बार फिर वही तड़फ पाने को,

दिल चाहता है ,

गुमान था तेरे बिन जीने का ,लेकिन आज फिर तेरे संग जीने को,

दिल चाहता है ,

बहुत हँस लिया ,आज एक बार फिर तेरी जुदाई में रोने को,

दिल चाहता है ,

बहुत रुसवाई देख ली, आज फिर तेरी वफ़ा को ,

दिल चाहता है ,

क्या कशिश है तुझमे , आज फिर ये मालूम करने को,

दिल चाहता है ,

वो पुराने लम्हों को एक बार फिर जीने को ,

दिल चाहता है ,

मौत के पास आकर , आज फिर तेरे संग जीने को, 

दिल चाहता है ,

तेरी आरजू ऐसी थी की तुझसे मिलने को ,

दिल चाहता है ,

Friday, July 12, 2013

रल्धू की सुसराड

आज कुछ हास्य पर लिखने का दिल हुआ, जो दिल में आया लिख रहा हूँ, कृप्या इसे एक हास्य के तोर पर ही ले आभार ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

रल्धु कू आया ख्वाब ,

अक सुसराड में पाड़ रहा वो कबाब,

आँख खुली जब तडके ,

भाज लिया वो अडके ,

एक किलो ली मिठाई ,

आधा किलो जलेबी भी तुलवाई ,

जाकै गाड्डी राम राम,

बोला हम पहुचे धुर धाम ,

सासू थी उसकी कुछ छोली ,

तपाक से नु बोली ,

करण के आया तू हड ,

तेरी बहू तो तेरे घर गड ,

सासू मेरी ,गोर त सुन ल बात ,

छोरी तेरी, मारे मेरे घुस्से लात ,

सासू कु नु सुन के आया गुस्सा ,

मारा घुमा के एक जोरदार घुस्सा ,

रलधु कु कुछ समझ न आया,

बेदम होके उसने गस खाया ,

खुली जो आँख ,

रलधु को होश आया,

तभी घर में सुसरा भी आया,

उसने भी एक सुतरा खूंटा चिपकाया,

भाजन की जो जुगत लगाई ,

साम्ही तै साली की संडल आई ,

अब ना रलधु कु कुछ दिया सुझाई,

भिड़ा तिगडम अपनी जान बचाई ,

देख भाल कै जाइयो सुसराड मै ,

रलधु न या बात सबकू समझाई ...........................


मॊलिक एवं अप्रकाशित






Friday, July 5, 2013

मेरा चाँद जमीन पर

साँझ ढले जब,चाँद जमीं पर आता है,

नशा एक खुमारी बन,दिल पर छा जाता है ,


मिलता सुकूँ रूह को अजीब सा,

जब पास मेरे वो आता है,


धीमा-धीमा सा उसकी खुसबू का असर ,

मादकता बन मेरे जेहन में उतर जाता है,


वो अपने नीलगगन से नैनो से ,

मुझको मदहोश कर जाता है,


काली नागिन सी जुल्फों का घनघोर अँधेरा ,

फैले तो दिल रोशन हो जाता है,


वो उसके अधरों की सुनहरी मुस्कान ,

देख हाल मेरा बेहाल हो जाता है, 


लम्हा-लम्हा, क्षण-क्षण , बातो में उसकी ,

सवेरा बन 'शब्' को निगल जाता है,,






Wednesday, July 3, 2013

कठिनाई लेखन की

''कवि तो भूखा मरता है, उसे कुछ नही मिलता ,अपना ध्यान काम पर लगाओ ,यूँ शेर-ओ-शायरी करने से जीवन का गुजारा नही चलता ''ये शब्द किसी ने मुझसे कहे है, अब मैं उन सज्जन को किया कहूँ , बस मैंने इतना ही कहा कि मुझे लिखने से आत्मिक शांति मिलती है,मुझे समझ नही आता उन्होंने ऐसा क्यूँ कहाँ ????????? मैं अपने यहाँ आये मरीजो को ये तो नही कहता कि मैं लिख रहा हूँ आप कही और दिखा ले,जब भी खाली समय मिलता हैं उसमे लिख लेता हूँ , और ये अकेले इन सज्जन का ही कहना नही है,बहुत लम्बी फेहरिस्त  है ऐसा कहने वालो की,लेकिन मैं भी बड़ा स्पष्ट जवाब देता हूँ,''जब तक जान है कलम तब तक चलती रहेगी,,'' शुरू - शुरू में तो मुझे बहुत गुस्सा आता था,अब उनकी बातो पर हसी आती है,दुनिया ही निराली है, अगर किसी का होंसला नही बढ़ा सकते तो कम से कम नकारात्मक बाते भी न कहे,,,,,


ना डिगा  सकेंगे वो होंसला हमारा 

हम तो बहुत मुददत से बात जमाये बैठे है ,,,,,


वो खुद को हमारा तथाकथित हमदर्द कहते है,हमारे भले के लिए वो ये सब कहते है,समाज की सोच , विचारधारा ,धारणा को बदलने की ताक़त कलम में होती है, हम वो लिखते है जो समाज में हो रहा है,उसे दर्द ,वेदना, हास्य ,व्यंग्य ,कहानी आदि अनेको रूप में  ढालकर समाज के सामने रखते है, बहुत लोग समझते है की हमारे साथ कुछ ऐसा हुआ है, जो हम ये सब लिख रहे है, कभी - कभी ऐसा होता है की हम वो लिखते है, जो हमारे साथ हुआ है,लेकिन बिना कुछ हुए भी हम अपने चारो ओर जो हो रहा है,उसे महसूस करके शब्दों का रूप दे देते है,

                        मेरा दर्द मुझ सा जाने ,

              ज़माने में नही उसको नापने के पैमाने,,,,,

लो अभी एक सवाल और आ गया , मेरा बेटा मेरे पास आया और पूछा की पापा आप किया कर रहे हो , मैं मुस्कराया , इससे पहले मैं कुछ बोलता , जवाब भी उसने खुद दे दिया कि आप कविता लिख रहे हो, कह कर चला गया,उन सज्जन लोगो से तो समझदार ये ही है कि मैं लिख रहा हूँ तो अभी कुछ देर वो मेरे पास नही आयेगा  और न ही कोई और सवाल पूछेगा ,,,,मैं बस इतना कहता हूँ की जिन्होंने अभी लेखन की शुरुआत की है ( मैं भी उनमे से एक हूँ,) आप सभी किसी की परवाह किये बिना ''बस लिखते रहे' क्योंकि अगर आपने लिखना बंद कर दिया तो, उन सज्जन लोगो का अगला व्यंग्यपूर्ण सवाल ये होगा कि ,,'''भूत उतर गया कवि बनने का '''

                              बस इतना ही कहता हूँ अपनी कलम के साथ चिपके रहे,कुछ पंक्तियों के साथ अपनी बात को खत्म करता हूँ, आप सभी की लेखनियो को हार्दिक शुभकामनाये ,


                            दुनिया नही ये बेदर्द जमाना है,

                         टोक लगाने का काम इनका पुराना है,

                          अरे ये किया समझेंगे हमें कभी ,

                            इनका तो ये दस्तूर पुराना है,       

                    

  

Monday, July 1, 2013

मन की आशा

मन की आशा ,

दिल की पिपासा ,

बुद्धि सहसा ,

विचारे ऐसा ,


आएगा ऐसा,

बदलेगा परिभाषा ,

दिलो सुकूँ ऐसा,

नहीं है निराशा ,


बंजर जमीं में ,

रोपेगा बीज ऐसा,

खिल उठेगी धरती,

खुश होगी प्रकृति ,


जागेंगे अरमान ,

सोयेंगे हैवान ,

फैलेगा उजाला,

मिटेगा अँधियारा,


जहाँ में ऐसा ,

फरिस्तो जैसा,

खूबसूरती से उसकी ,

बदलेगा जहाँ,


अनल , पावक , अग्नि,

धरा ,वसुंधरा ,प्रथ्वी ,

नीर, जल, वारी ,

सा रूप होगा उसका ,


चमक होगी ऐसी,

नीरज ,पंकज ,कमल जैसी ,

व्यक्तित्व होगा ऐसा ,

गगन, अम्बर जैसा ,


बदलेगी फिजां ,

मुस्कुराने से उसके,

होगी ख़ुशी चमन में,

आने से उसके,






Friday, June 28, 2013

ऐसा कियो हुआ ?

मंज़र आज भी वही है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,नजरो के सामने से हटता ही नही | बार बार बस एक ही टीश होती है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, दिल में की ऐसा कियो हुआ । ,,,,,,,,,,,,इतनी तबाही सोच कर भी रूह कांप उठती है ।,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, सोते जागते बस एक ही सवाल दिलो दिमाग पर छाया रहता है।,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ऐसा कियो हुआ ?,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, सवाल का बस एक ही जवाब मिलता है,गुनहगार हम खुद  है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,। इस स्थिति , इस आपदा को निमंत्रण हमारा खुद का दिया हुआ है।,,,,,,,,,,,,,,,,, लेकिन हम फिर भी ये ही कहते है ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,कि हे भगवान ये तूने क्या किया ?,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, तेरे दर पर आये थे, तूने भी रक्षा नही की ? मनुष्य का स्वाभाव ही ऐसा है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, हमेशा अपने किये हुए को दुसरे पर प्रत्यारोपित करना,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, भगवान को भी नही बक्शा  ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, जब हम इतने समय से उसकी बनायीं हुई प्रकृति का विनाश करने पर तुले थे,, ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, तब तो नही सोचा की ऐसा भी हो सकता है,,,,,,,,,,,,,,, अब सारा दोष भगवान को दे रहे है,,,, ,,,,,,, ,,,,,,,,,,, जब पहाड़ो का सीना चीरकर रास्ते , सुरंग , पुल बनाये, ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, नदियों का रास्ता रोककर बांध बनाये,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, कब तक प्रकृति अपना विनाश सहन करती ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, कोई सबक तो वो हमें जरुर देती ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,ताकि हम दोबारा ऐसा न करे,,,,,,,,,,,,,,, प्रत्येक क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,प्रकृति भी उससे अछूती नही ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,प्रत्येक काम की अधिकता नुकसान दायक होती है,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,प्रभु को दोष देने से कुछ नही होगा ,,,,,,,,,,,,,,,,खुद की सोच को बदलो ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, प्रकृति को कम से कम नुकसान हो,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,, ये हमारी सोच होनी चाहिए ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,  

Tuesday, June 25, 2013

पिता

मुझे पिता नही 
एक भगवान मिला है,
जीता जागता 
एक वरदान मिला है,
ऊँगली पकड़कर जिसकी,
चलना है सिखा हमने, 
जिन्दगी जीने की समझ ,
सीखी है जिनसे हमने ,
आकाश से भी ऊँचा है
कद जिनका,
गहराई है
बातो में उनकी,
अश्क न आने दिए
आँखों में मेरी ,
परवरिश
इतने प्यार से की है,
हर दर्द को समेट कर
अपने आगोश में,
खुशियों से भर दी है
जिन्दगी मेरी,
ऐसे पिता को शत शत नमन करता हूँ ,
ऐसे कई जन्म भी उनकी सेवा को अर्पण करता हूँ,

Monday, June 24, 2013

जिन्दगी

भावो को आज मैंने बह जाने दिया,

जो दिल में आया ,कलम से लिख जाने दिया,


सपनो के सागर  में खुद को डूब जाने दिया,

दिल से आज जिन्दगी को बिन पंख उड़ जाने दिया,


सब गिलो सिकवो को आज बह जाने दिया,

बस हँसी को आज दिल में उतर जाने दिया,


ज़माने के गमो को आज ज़माने के संग जाने दिया,

पहली बार आज ख़ुशी को दिल के अंदर उतर जाने दिया,


नफरतो को छोड़कर ,प्यार को हमराह बन जाने दिया,

बदले शायद जिन्दगी ,इस उम्मीद से आज उसूलो को भी टूट जाने दिया,


जिन्दगी को जिन्दगी से आज मिल जाने दिया,

हमने तो आज अपनी रूह को भी फना हो जाने दिया,



Saturday, June 22, 2013

हाइकू

भारी बारिश ,
लील गयी धरती ,
सृजन सारा 


                              


Friday, June 21, 2013

हमें मालूम ना था

तबाही का सिलसिला ,

यूँ शुरू होगा ,

हमें मालूम न था ,

मन्नत मांगी थी,

जिस बारिश की हमने ,

उसके आने के बाद,

मंज़र ये होगा,

हमें मालूम न था ,

खुद भगवान भी बह जायेंगे,

धारा में जल की ,

बर्बर और रोद्र रूप ,

ऐसा प्रकृति का होगा,

हमें मालूम ना था,

गुजारिश करते है,

उस रब से,

फिर ऐसा मंजर ना हो कभी ,

हमारी गलतियों का ,

ऐसा अंजाम होगा ,

हमें मालूम ना था,,,,,,,,,,,,,,



Thursday, June 20, 2013

कसम-ए-तन्हाई

सपने टूटे , रास्ते भी छूटे ,

पनघट पर मटके भी टूटे ,


जो थे पास हमारे, वो भी छूटे ,

धीरे-धीरे दिल के अरमान भी टूटे ,


आँखों से आज आँसू भी छूटे ,

दिलो से दिल के तार भी टूटे ,


हाथो से आज हाथ भी छूटे ,

दिल के सुखद एहसास भी टूटे,


जुबाँ से लफ्जों के तीर भी छूटे ,

तुझसे मिलने के ख्वाब भी टूटे,


तेरी कसम-ए-तन्हाई से, आज हम भी छूटे ,

तेरी बातों से आज हम भी टूटे,


सपने टूटे , रास्ते भी छूटे ,

पनघट पर मटके भी टूटे ,




Tuesday, June 18, 2013

वो गुमनाम ख़त

हर रोज़ एक पैगाम आता है,

ख़त वो बेनाम आता है ,


मिलने की  ख्वाहिश लिखते है हमसे ,

मिलने से पर दिल कतराता है,


सोची समझी सी साजिश लगती है,

किसी का कोई पुराना ख्वाब लगता है,


बन्दिसो में जीने की आदत है शायद उसको ,

तभी तो वो गुमनाम ख़त मेरे नाम लिखता है,


उलझी हुई बाते होती है,

डगमगाते से अल्फाज लिखता है,


जुस्तजू उसकी हाल ए दिल बयाँ करती है,

बहका हुआ उसका, अंदाज ए बयाँ लगता है,


अब तो आदत सी हो गयी यारो ,

ख़त का रोज़,  इंतजार रहता  है,




Monday, June 10, 2013

देश लुटता रहा

बहुत लूटा  - बहुत लूटा

इस देश को बहुत लूटा ,

कभी पारसियों ने तो

कभी गौरी ने लूटा ,

कभी मुगलों ने तो

कभी फिरंगियों ने लूटा ,

मगर इन नेताओ से तो 

फिर भी कम लूटा ,

मेहनत की कमाई को ,

कभी कोयला, कभी 2G

तो कभी राष्ट्रमंडल के नाम पर लूटा ,

चम्बल के लुटेरे तो

यूँ ही बदनाम है यारो, 

संसद के लूटेरों से ज्यादा तो

किसी ने भी नही लूटा ,

कभी महंगाई के नाम पर,

कभी पेट्रोल के दाम पर,

जिसका जब भी जहां भी मोका लगा ,

उसने हमें पूरे दिल से लूटा ,

जब कही भी

कुछ भी बाकी न रहा,

तो भारत निर्माण के नाम पर लूटा  ,,,,,,,,,


मैं मेरी तनहाहियो में अक्सर अकेला रहता हूँ ,

तुम चले आओगे अक्सर ये सोचता रहता हूँ,


बिछड़े हुओ की खातिर अक्सर अक्श बहाता रहता हूँ,

मत समझो मुझको दीवाना मैं प्यार में पागल रहता हूँ,


चलते हुए बहाव की तरह हर पल लिखता रहता हूँ,

जलते हुए दिए की तरह हर पल जलता रहता हूँ,


हँसते हुए जिन्दगी को बस यू ही जीता रहता हूँ ,

राज जो उनके है आज भी दिल में छुपाये फिरता हूँ,


मैं तो अलबेला हूँ लहरों पर चलता रहता हूँ,

डर नही है कुछ खोने का मैं तो सब लुटाये फिरता हूँ,


 

Monday, June 3, 2013

उल्फत ए गम में ,

आज़ादी की खुशबू कहाँ,

जिन्दगी की राह में,

उनके मिलने की उम्मीद कहाँ,

मैं तडफा हूँ चाह में,

अब चाहत के मिलने की उम्मीद कहाँ,

जिन्दगी से लुका छिफ़ी में,

अब छिपने की जगह कहाँ,

बेतरतीब रोने में,

अब हसने की गुंजाईश कहाँ,

जिन्दगी के मेले में, 

अब उन्हें ढूंढे कहाँ, 


Friday, May 3, 2013

साहित्य और सिनेमा

                                                             साहित्य और सिनेमा


          साहित्य और सिनेमा दोनों का आपस में बहुत गहरा रिश्ता है, बिना साहित्य के हम लोग सिनेमा की कल्पना भी नही कर सकते,लेकिन आजकल फूहड़ता भरा साहित्य और उसी तरह का सिनेमा देखने को बहुतायत में मिलता है,एक दौर था जब अच्छा साहित्य होता था , उसी तरह का सिनेमा में हमें देखने को मिलता था, एक सन्देश होता था , गीतों में भी शब्दों और भावो का बहुत अच्छा प्रयोग होता था, संगीत को सुनकर दिल को सुकून मिलता था,एक बड़ा रसीलापन गीतों में, सिनेमा में होता था,लेकिन आज न तो कही अच्छा  संगीत है, न ही शब्दों को महत्व दिया जाता है,बस उल्टा सीधा जो भी लिख दिया उसी को तड़क भड़क के साथ फूहड़ता से पेश कर दिया जाता है,अगर मैं कहू की ये गलती सिनेमा वालो की है, तो मैं बिलकुल गलत हू , वो लोग तो उसे पेश करते जो हम सुनना और देखना पसंद करते है ,जो हमारी मानसिकता है,वो बहुत अच्छे  से उसे पढ़ लेते है, और उसे हमारे सामने पेश कर देते है,वो लोग आज के युवा को ध्यान में रख कर सिनेमा बनाते है,और उसको वो मनोरंजन का नाम देते है,मनोरंजन के नाम पर वो सब हमारी मानसिकता को हमारे संस्कारो को कुण्ठित कर रहे है,कोई भी सिनेमा हो हम परिवार के साथ बैठकर नही देख सकते,तब हमें शर्म  आती है,लेकिन जब वही सब अकेले में देखते है तो मज़ा आता है,ये दुर्भाग्य ही है की आज हम इतनी विकृत मानसिकता के साथ जिन्दगी जी रहे है,मात्र  एक सन्देश देना चाहता था , कितना भी इस बारे में लिखू वो कम ही होगा,लेकिन अभी बात अधूरी है,अगर हम कुछ कर सकते है तो वो है साहित्य को अच्छा बना सके,उसके  लिए हमें पूर्ण कोशिश करनी होगी की हम जो भी लिखे वो विकृत ना  हो ,मतलब ये है कि अच्छा लिखे, संदेशपुरक लिखे ,कभी तो , कही से, किसी को तो शुरुवात करनी होगी , दुसरो से अपेक्षा करने से पहले खुद ही शुरुवात कर दे,धीरे धीरे ही सही शायद कुछ बदलाव तो आये,बस अब और कुछ नही कहूँगा , अगर किसी को मेरा लेख बुरा लगा हो या किसी को मेरी बाते सत्य प्रतीत न होती हो,तो मैं उनसे माफ़ी चाहता हू । 


                                                                                                 

Sunday, April 21, 2013

वो पुरानी खिड़की

वो पुरानी खिड़की आज भी है,

जिसको देखा करते थे सरेशाम ,

लेकिन आज वहाँ तन्हाई है,

जहाँ कल प्यारा सा मुखड़ा होता था,

अब तो उस गली से गुजरना भी नागवारा है,

उसकी यादों का आज भी दिल में बसेरा है,

 ना जाने कियो वो हमें ,

जिन्दगी ए मझदार में अकेला छोड़ गये ,

 वो पुरानी खिड़की आज भी है,

जिसको देखा करते थे सरेशाम ,

जिसकी यादों में जागते थे रात भर ,

अब उसकी यादों में रोते है रात भर ,

मुकम्मल की थी जिसने जिन्दगी हमारी,

अब वो ही अधूरा छोड़ कर चले गये ,

जिन्दगी तो उनके साथ चली गयी,

अब तो बस इंतजार अलविदा कहने का है,

अब और किया कहू ,

कुछ न बाकी रहा ,

 वो पुरानी खिड़की आज भी है,

जिसको देखा करते थे सरेशाम ...........................



Thursday, April 18, 2013

बिना सोचे समझे मत काम करो,

गलत राह पर चलकर मत जीवन का अपमान करो,

करना है तो दिल से काम करो,

माता पिता का सम्मान करो,

जो मिला है उसका मान करो,

चले हो जिस राह पर वहाँ अपना नाम करो,

बिना सोचे समझे मत काम करो।।।

लड़ झगड़ कर मत जीवन बर्बाद करो ,

हँस बोलकर सबको प्यार करो,

रोकर आंसुओ को मत बर्बाद करो,

ख़ुशी में इनको आँखों से आजाद करो,

बिना सोचे समझे मत काम करो।।।


  

Wednesday, April 17, 2013

मेरी हर साँस में तुम हो,

मेरी दुनिया का रंग तुम हो,

दिल नसीन तुम हो, 

फिर बेवफाई की बात ही कहा,

सुकून ए दिल तुम से है,

जान से भी प्यारे हो तुम,

इकरार तो हमेशा से था,

इंकार की बात ही कहा थी,

रंग जो जुदाई का था,

अब करीबी में ढल गया है,

लफ्जों से बयां नही होता , 

आँखे बयाँ करती है फ़साना प्यार का,

सहेज कर रखा है दिल में,

बीते लम्हों का फ़साना ,

 मेरी हर साँस में तुम हो,

मेरी दुनिया का रंग तुम हो,

Thursday, April 11, 2013

चाहा तो बहुत था उनको ,

लेकिन वो समझ ना पाये ,

गुस्ताखी शायद हमसे हुई ,

और वो हमारा अंदाज ए बयाँ ना समझ पाये ,,,

Saturday, April 6, 2013

 गफलत थी कुछ ऐसी की,

 अपना नाम ए निशान मिटा बैठे ,

न जाने कब रेत पर उनकी ,

धुन्द्ली सी तस्वीर बना बैठे ,,,,,,,,,,,,,,,

Monday, March 25, 2013

जिन्दगी

और किया कहू ,

अब मैं जिन्दगी को,

ये तो सिलसिला है ,

चलता रहेगा ,

 मुझ जैसे तो बहुत आये ,

और आते रहेंगे ,

न रुका  कभी ,

किसी के आने से ,

 न रुका  कभी ,

किसी के जाने से ,

बाकि बचता है ,

तो बस वो है यादें ,

कुछ अच्छी सी ,

कुछ बुरी सी ,

आओ मिलकर करे ,

कुछ ऐसा जिन्दगी मैं ,

जो याद करे लोग ,

हमें जाने के बाद भी ,

और किया कहु ,

अब मैं जिन्दगी को ,,,,,,,,,,,,,,,


   

Thursday, January 10, 2013

'''TALASH

हुई तलाश पूरी मिलने से आपके 
आज जाना जिंदगी अधूरी क्यूँ लगती थी

कुछ गम था दिल को जिसका हमें गुमा ना था     
तन्हाई मैं अक्सर जो ख्यालो मैं आता  था       
सपनो मैं आकर  हमें कौन सताता था  
सूनी  रातो मैं  बेबस कौन रुलाता था 
बेबात भर  दिन दिल उदास रहता था 

हमको मालूम ना था क्या है दिल की चाहत 
किसकी तलाश थी इसको .....


हुई तलाश पूरी मिलने से आपके 
आज जाना जिंदगी अधूरी क्यूँ लगती थी

क्यूँ मैं अपनी ही  खुदी से अलग था 
आँखों को हर वक़्त इंतजार किसका था 
हर आहट  पर दिल दरवाजा  ताकता था 
उदास दिल पहलू  कोई रोने को ढूंढ़ता था
 हैं कँहा वो 'अपना' दिल ये सोचता था 
 दुःख कहे किससे  अपने  दर्द  पूछता  था 


हमको मालूम ना था क्या है दिल की चाहत 
किसकी तलाश थी इसको .....


हुई तलाश पूरी मिलने से आपके 
आज जाना जिंदगी अधूरी क्यूँ लगती थी